हम हमेशा किसी और चीज़ की तलाश में रहते हैं — ज़्यादा धन, ज़्यादा सुख, ज़्यादा पहचान। लेकिन प्रभु कहते हैं:
“तू जो है, जैसे है, जहाँ है — वह मेरी इच्छा से है। संतोष में ही सुख है।”
जब हम अपने पास की चीज़ों के लिए कृतज्ञ होते हैं, तो जीवन सरल और सुंदर लगने लगता है।